Skip to main content

Poetry~हर इंसान जीना चाहते हैं, बड़े शान-ओ-शौकत से।

हर इंसान जीना चाहते हैं,
बड़े शान-ओ-शौकत से।
फिर भी लालच और हवस में पड़कर,
खो देते हैं शान-ओ-शौकत भी,
बड़ी हीन से।
हर इंसान रहना चाहते हैं,
बड़े इज्जत-व-आराम से।
फिर भी दौलत के खातिर,
खो देते हैं इज्जत-व-आराम भी,
बड़े आसान से।
हर इंसान बनना चाहते हैं धनवान,
बड़ी रकम-व-दौलत से।
फिर भी अपनी खुशियाँ और सेहत के खातिर,
खो देते हैं रकम-व-दौलत भी,
बड़े आराम से।
हर इंसान ढूँढना चाहते हैं,
जीवन में खुशियाँ और शान्ति,
दुनियाँ के भीड़ में, बड़ी
उत्सुकता से।
फिर भी दुनियाँ के इस भीड़ में,
एक दिन हो जाते हैं अकेला,
बड़े तन्हाई से।
हर इंसान पाना चाहते हैं अपनी मंजिल,
बड़े शान्ति और अरमान से।
फिर भी राहों पर भटकते रहते हैं,
बड़ी बेचैनी से।
बस हर इंसान फँसते जाते हैं,
जिन्दगी के हर चाल में,
बड़े शौक-व-अरमान से।
कमबख्त किसी को समझ आता नहीं,
सबकी मंजिल तो मौत है।
जिन्हें सब ढूँढते रहे वर्षों,
बड़े शौक और अरमान से।

Comments

Popular posts from this blog

Poem~इसलिए वक्त रहते हीं, हमसब बन जाएँ इंसान, और इंसानियत को हीं अपना लें, समझकर अपना धर्म।

इस संकट घड़ी में भी, आज सोसल मीडिया पर, कोरोना प्रकोप के  साथ-साथ हिन्दू-मुस्लिम पर भी चर्चे बहुत हो रहे हैं। कुछ मुस्लिम भाई गलत फेहमी का शिकार हो चुके हैं और कुछ हिन्दू भाई भड़क कर सभी मुसलमानों को गलत बता रहे हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, सार्थकता के साथ मैंने एक कविता लिखा है, जिससे हमसभी देशवासी एक होकर, अपने देशहित के कार्य करने में सक्षम रहें।              💓कृप्या! एक बार जरुर पढें 🙏           ✍️💞💞💞🙏🙏🙏💞💞💞✍️ 🙏💞🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳💞🙏 हिन्दू ने मुस्लिम को मारा, मुस्लिम ने हिन्दू को मारा।  देखो धर्म के नाम पर, इंसान ने हीं इंसान को मारा। सिर्फ ये सच नहीं! सच तो ये है कि, इंसान ने इंसानियत को मारा। भाई ने भाई को मारा, दोस्त ने दोस्त को मारा। देखो मोह और लालच के खातिर, अपने हीं अपनों को मारा। सिर्फ ये सच नहीं! सच तो ये है कि, इंसान ने हर रिश्तों को मारा। आज इस संकट में, कुछ मुस्लिम भाई कहते हैं। ये कोरोना कोई वायरस नहीं! मेरे अल्लाह का भ...

Poetry~बस थोड़ा सा फर्क हो गया, कल और आज में।

तूने जिन्दगी के बीच सफर में, धोखा दे हीं दी मुझे।  तो क्या हुआ ऐ मेरे बेवफा सनम? मेरा प्यार, कल भी सार्थक था, आज भी सार्थक है।  बस थोड़ा सा फर्क हो गया, कल और आज में।  कल मुझे, प्यार था तुमसे, आज घृणा हो गया है तुझसे।  कल मेरी थी तुम, आज किसी और की, हो गयी हो तुम।  हाँ! बस इतना हीं फर्क हो गया है, कल और आज में।